भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 उपेक्षा की शिकार रही है

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 उपेक्षा की शिकार रही है

भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 उपेक्षा की शिकार रही है

India’s National Education Policy 2020 has been a victim of Ignorance

Anuragh Behar, CEO Azim Premji Foundation and founding Vice Chancellor, Azim Premji University, India.

This article is Translated based on a article published in The Live Mint, 23 July 2025

 

2020 की नीति के प्रस्तावों को इस तरह तोड़ा-मरोड़ा गया है कि यह समझना मुश्किल हो जाता है कि इसके आलोचकों ने इसे सच में पढ़ा भी है या नहीं। ठीक संविधान की तरह, इसे भी अक्सर हमारी खुद की विफलताओं के लिए दोषी ठहरा दिया जाता है।

लेखक: अनुराग बेहर, was the Member of the NEP 2020 Drafting Committee

हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की पाँचवीं वर्षगांठ पर हैं। चूंकि मैं NEP ड्राफ्टिंग समिति का सदस्य रहा हूँ, मुझसे अक्सर पूछा जाता है, “आपने इस पर इतना समय लगाया, तो ज़मीन पर असल में क्या हुआ?” पूछने का लहजा कभी-कभी आरोप लगाने जैसा होता है, तो कभी सच्ची जिज्ञासा वाला।

मेरा उत्तर होता है: “यह कहने के लिए अभी बहुत जल्दी है।”

इसका एक कारण यह है कि इन पाँच वर्षों में से दो वर्ष महामारी से प्रभावित रहे, जिससे स्कूल बंद हो गए और सरकारें संकट से निपटने में लग गईं। उसके बाद कम से कम एक साल तो केवल खोई हुई पढ़ाई की भरपाई में चला गया। और जब हम यह भी समझते हैं कि NEP का दृष्टिकोण 20 वर्षों का है, तब यह कहना वाजिब लगता है कि सफलता का मूल्यांकन अभी जल्दबाज़ी होगा।

लेकिन यह कहना भी पूरी तरह बचाव में जाने जैसा होगा, क्योंकि NEP ने इस 20-वर्षीय यात्रा के दौरान कई स्पष्ट मील के पत्थर निर्धारित किए थे। इनमें से कई लक्ष्य स्पष्ट रूप से दस्तावेज में दर्ज हैं। इसलिए, जहां तक भारतीय शिक्षा पर इसके प्रभाव की बात है, वहाँ कहना जल्दी हो सकता है, लेकिन यह ज़रूर देखा जा सकता है कि इसे ज़मीन पर लागू करने के प्रयास कितने हुए हैं।

जहाँ NEP उच्च शिक्षा के लिए अधिक परिवर्तनकारी है, वहीं मैं अपनी टिप्पणी केवल स्कूल शिक्षा तक सीमित रखूँगा, जिसे मैं क़रीब से देखता हूँ।

उससे पहले, इन पाँच वर्षों में NEP को लेकर सार्वजनिक विमर्श पर कुछ टिप्पणियाँ—चाहे वह स्कूल हो या उच्च शिक्षा। चौंकाने वाली बात यह है कि अनेक लोग और संस्थान NEP के नाम पर वे काम कर रहे हैं जो नीति में हैं ही नहीं।

उतनी ही बड़ी संख्या में लोग NEP की आलोचना उन बातों के लिए कर रहे हैं जो न तो उसमें स्पष्ट हैं और न ही अप्रत्यक्ष रूप से। सबसे हास्यास्पद उदाहरण वे राज्य हैं, जो दो विपरीत छोर पर हैं—कुछ ने घोषणा कर दी कि उन्होंने NEP को पूरी तरह लागू कर दिया है जबकि ज़मीनी स्तर पर बहुत कम किया है; वहीं कुछ राज्य नीति की आलोचना करते हैं लेकिन उसके कई सुझावों को चुपचाप लागू कर रहे हैं।

इसका एक कारण नीति को ठीक से न पढ़ना या जानबूझकर तोड़-मरोड़ कर पेश करना हो सकता है। लेकिन यह भी संभव है कि लोग बस पढ़ते ही नहीं—जितना चौंकाने वाला यह सुनने में लगे।

कुछ लोग दावा करते हैं कि वे NEP लागू कर रहे हैं, जबकि वे ऐसे काम कर रहे हैं जो नीति की भावना और लक्ष्य के बिल्कुल विपरीत हैं। वहीं कुछ अन्य लोग संतोषपूर्वक यह दावा करते हैं कि उन्होंने इस “ख़तरनाक” नीति का साहसपूर्वक विरोध किया है।

चलिए दो उदाहरण लेते हैं।

पहला, तीन-भाषा सूत्र (Three Language Formula)—यह भारत की शिक्षा नीति का हिस्सा 1968 से रहा है। NEP 2020 ने इसको और अधिक लचीला और स्थानीय/क्षेत्रीय प्राथमिकताओं के अनुकूल बना दिया है।

फिर भी यह राजनीतिक विवाद का विषय बन गया, और इसके आलोचक या तो नीति की असल बातों से अनजान हैं या फिर अपनी चिंताओं को इस पर थोप रहे हैं।

दूसरा, NEP पर यह आरोप कि यह निजीकरण को बढ़ावा देती है, उन लोगों के लिए चौंकाने वाला है जिन्होंने इस नीति को वास्तव में पढ़ा है। नीति में तो सार्वजनिक शिक्षा को मजबूत करने पर ज़ोर दिया गया है।

अब चलते हैं मेरी संक्षिप्त समीक्षा की ओर—तीन ऐसे परिवर्तन जो NEP के कारण जन्म ले रहे हैं और जो समय के साथ भारतीय स्कूल शिक्षा को नया रूप देंगे।

  1. प्रारंभिक बचपन शिक्षा (Early Childhood Education – ECE) पर समग्र ध्यान

शोध से स्पष्ट है कि 3 से 8 वर्ष की उम्र बच्चे के हर पहलू—शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक और भावनात्मक—के विकास के लिए महत्वपूर्ण होती है।

फिर भी भारत की शिक्षा व्यवस्था ने ऐतिहासिक रूप से इस चरण को नजरअंदाज किया है।

NEP के कारण पाठ्यक्रम परिवर्तन, बुनियादी ढांचे में सुधार और शिक्षकों के प्रशिक्षण पर व्यापक काम हो रहा है। देशभर में बालवाड़ी और आंगनवाड़ी सिस्टम में ECE को लेकर हलचल देखी जा सकती है।

हम अभी शुरुआती चरण में हैं, लेकिन यह कार्य एक समान और प्रभावी व्यवस्था की नींव रख रहा है। सबसे अधिक लाभ वंचित समुदायों के बच्चों को मिलेगा—बशर्ते हम इस गति को बनाए रखें।

  1. मातृभाषा आधारित शिक्षा के जरिए साक्षरता

शोध बताता है कि बच्चे अपनी जानी-पहचानी भाषा में सबसे अच्छा सीखते हैं। लेकिन भारत ने इस दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए, जिससे प्रारंभिक शिक्षा की स्थिति बदतर बनी रही।

NEP का दृष्टिकोण बहुभाषी कक्षा की सच्चाई को भी स्वीकार करता है और अंग्रेज़ी सीखने की महत्वाकांक्षा को भी।

राज्य अब इस दृष्टिकोण को अपनाने लगे हैं, साथ ही बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता पर ध्यान दे रहे हैं। इससे प्रारंभिक शिक्षा के परिणामों में सुधार की आशा है।

  1. शिक्षक शिक्षा में बुनियादी बदलाव

दशकों से शिक्षक प्रशिक्षण व्यवस्था निम्न गुणवत्ता और भ्रष्टाचार से ग्रस्त रही है। एक मायने में यही हमारी स्कूल शिक्षा की विफलताओं की जड़ रही है।

NEP ने इस मुद्दे को सीधे और प्रभावी रूप से संबोधित किया है। देश के शीर्ष विश्वविद्यालयों में चार वर्षीय समेकित (Integrated) कार्यक्रमों को शुरू करके—उन्हें मानक योग्यता बनाया गया है। साथ ही विनियामक सुधार किए गए हैं।

हम एक नए युग की शुरुआत की दहलीज पर खड़े हैं।

हम अक्सर संविधान को अपनी असफलताओं का दोषी ठहराते हैं या अपनी मनमानी को सही ठहराने के लिए उसका सहारा लेते हैं। ठीक उसी तरह, NEP के साथ भी व्यवहार हो रहा है।

लेकिन जैसे संविधान में परिवर्तन की शक्ति है, वैसी ही शक्ति राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी है।

अब यह हमारे ऊपर है कि हम इससे क्या बनाते हैं।

और शुरुआत तो इतनी होनी चाहिए कि हम कम से कम इसे पढ़ें।

Education for All in India